Thursday, January 22, 2009




राजा के कान नहीं होते



-अक्षय जैन
राजस्थानी में एक कहावत है- जहां राणाजी कहें, वहीं उदयपुर। यानी उदयपुर वहीं होगा, जहां राजा की मरजी होगी। इसी बात को एक शायर ने अपने अंदाज में यूं कहा-राजा बोला रात है। मंत्री बोला रात है। संत्री बोला रात है। सुबह-सुबह की बात है।
किसी ने राजा से पूछा-देश में गेहूं की किल्लत हो गई है। दाम बहुत बढ़ गए हैं। आप कुछ कीजिए। राजा ने तुनक कर जवाब दिया- क्या देश का सारा गेहूं मैं खा गया? सारी दुनिया में गेहूं के दाम बढ़ रहे हैं। यह समस्या अकेले हिन्दुस्तान की नहीं है। आप लोग भूखे नहीं मरेंगे। हमने आपके लिए आस्ट्रेलिया से गेहूं मंगवाया है।
सदियों से लोग यह मानते चले आ रहे हैं कि राजा के कान नहीं होते। अब राजा को कौन कहे कि आस्ट्रेलिया का गेहूं जानवरों के खाने लायक भी नहीं है। यह बात अगर राजा को बताई जाती तो राजा मुस्कराते हुए जबाब देते- गलत। बिल्कुल गलत। आज तक एक भी जानवर ने मुझसे आकर शिकायत नहीं की कि आस्ट्रेलिया के गेहूं की क्वालिटी अन्तरराष्ट्रीय स्तर की नहीं है।
जानवर और इंसान में फर्क है। जानवर भूखा रहता है तो भी बगावत नहीं करता। इंसान ज्यादा दिनों तक भूखा नहीं रह सकता। छोटी-छोटी बातों पर आसमान सर पर उठा लेता है। सल्तनत बदलने की बात करने लगता है। मेरे खयाल से यह रवैया ठीक नहीं है। सिर्फ इसलिए कि लोगों को खाने के लिए गेहूं नहीं मिल रहा है, राजा के कपड़े उतारने की इजाजत नहीं दी जा सकती। गेहूं तो कल पैदा हो जाएगा, राजा की इज्जत एक बार चली गई तो वापस नहीं आएगी। भला बताइए, सियासत में यही चलन जारी रहा तो कौन हिन्दुस्तान का राजा बनना चाहेगा?
राजा के एक मंत्री सिंगाफर गए थे। वहां उन्होंने एक प्रेस कांप्रफैस बुलाई। दुनिया भर के अखबारों और टीवी चैनलों के संवाददाता मौजूद थे। मंत्री महोदय ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा-हिन्दुस्तान में पहले गरीब लोग एक वक्त ही खाना खाते थे। अब गरीब लोग दो वक्त खाना खा रहे हैं। हमारे देश में अनाज की कमी का यह एक अहम कारण है।
गरीब लोगों को अपनी औकात में रहना चाहिए। यह क्या किसी से छिपा है कि हिन्दुस्तान का अनपढ़ और निर्धन आदमी, एक टूटे-फूटे मकान और आधे-अधूरे कपड़ों में, एक वक्त का खाना खाकर कितना मजे से रहता आया है। अब दो वक्त खाना खा रहा है। इससे देश का नाम खराब हो रहा है।
सिंगापुर में हमारे मंत्री ने जो कहा, उसे पूरी दुनिया ने सुना। पूरी दुनिया को पता चल गया कि हिन्दुस्तान में बहुत ज्यादा गरीब लोग हैं। ताजमहल ही क्यों, राजा चाहे तो यूरोप और अमेरिका के धनवान सैलानियों को भारत की गरीबी दिखाकर पैसे कमा सकता है। गरीबी दिखाने के लिए राजा को कोई इवेन्ट शो या किसी बड़े महोत्सव के आयोजन का खर्चा भी नहीं करना पड़ेगा। कालाहांडी, जहानाबाद, बुन्देलखंड या विदर्भ में कुछ हेलीपैड बनवाने से ही टारगेट हासिल किया जा सकता है।
चावल दक्षिण भारत का भोजन रहा है। सदियो से रहा है। इडली, डोसा की धाक पूरी दुनिया में है एक अन्य मंत्री ने शिकायती लहजे में बयान दिया-"देश में गेहूं की किल्लत तो होनी ही थी। दक्षिण भारत के लोग आजकल रोटियां ज्यादा खाने लग गए है।" यानी यह दरबार तय करेगा कि उत्तर भारत के लोग क्या खाएं और दक्षिण भारत के लोग क्या खाएं। देश की जनता को मंत्री महोदय का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने उन लोगों के खान-पान की आदतों के बारे में कुछ नहीं कहा जो आज भी पेड़ों की छालों और मरे हुए जानवरों का मांस खाकर जिन्दा हैं। इसे कहते हैं शालीनता। इसे कहते हैं तहजीब।
कुछ लोग अतुल्य भारत की छवि बिगाडऩे में लगे हैं। गेहूं के दाम को लेकर दरबार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। देश के किसान से गेहूं आठ रूपया किलो खरीदा जा रहा है और घटिया किस्म का गेहूं विदेश से सोलह रूपये किलो खरीदा जा रहा है। जो लोग ऐसे सवाल खड़े कर रहे हैं, उन्हें देश से निकाल दिया जाना चाहिए। धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर लोगों को भडक़ाना आसान है, सियासत में जायज है, क्योंकि इससे वोट बैंक में इजाफा होता है। लेकिन जब भूख और अनाज का सवाल आता है तो महल की नींव में भूकंप की आहट सुनाई देनी शुरू हो जाती है।
दोगुने दाम पर विदेशों से गेहूं खरीदना राष्ट्रीय हित में है। हम दुनिया को दिखा देना चाहते हैं कि हम कडक़े नहीं है। हमारे पास बहुत दौलत है। हम अतुल्य भारत हैं। हम महाशक्ति बनने के बहुत करीब हैं। भारत के किसानों को सबक सिखाना जरूरी है। हम भारत को अनाज के मामले में भी एक आयात निर्भर देश बनाएंगे। जय हिन्द।
सम्पकर्: ए/64 हिम्मत अपार्टमेंट, राजेन्द्र प्रसाद रोड, मुलुंड (प.श्, मुंबई-400080

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