Thursday, March 26, 2009

इतिहास की इबारत लिखी हुई हैं गोडवाड़ में

देसूरी,26 मार्च। अरावली की तलहटी में इतिहास की स्वर्णिम इबारत लिखी हुई है गोडवाड़ में। तपस्वी, मनीषी से लेकर दानदाताओं और आजादी के स्वतंत्रता वीरों के विराट व्यक्तित्व को संकेत-प्रतीक में दर्शाते गोडवाड़ के कई स्थल अपनी बात सुनाते हुए लगते है। गोडवाड़ क्षेत्र के धार्मिक, पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व को जानने की लालसा में प्रसिद्ध यात्राी हवेन सांग ने सातवीं शताब्दी में कई स्थानों का भ्रमण किया था।
परशुराम गुफा-समुद5 तल से 3995 फुट की टंचाई पर अरावली की वादियों के बीच स्थित यह गुफा सादडी से 14 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। हैदयवंÓाीयों के संहार के पश्चातप परशुराम ने यहीं बैठकर तपस्या की थी।
जूना खेड़ा-चौहानों की राजधानी रहे नाडोल के इस क्षैत्र में पुरातात्विक उत्खनन से पूरी एक सभ्यता के अवशेषा प्राप्त हुए है। देसूरी तहसील स्थित इस कस्बे के भव्य शिल्प सजे देवालय तथा आशापुरा माता का मंदिर कला और श्रद्वा के केन्द्र है। बताते है कि अतीत में अतिसंवेदना रहे इस क्षैत्र को गजनी व ऐबक ने रौंदने की कोशिश की थी। इतिहासकार इस स्थल गुरू गोरखनाथ, नारद व राजा भोज से भी जोड़ते है।
हिंगलाज माता, गुडालास लार्ड विलियम वैंंिटक के समय में घणी ग्राम में हिंगलाज माता की गुफा मंदिर के आसपास पिंडारियों ने मुंह छुपाया था। जिन्हें कर्नल स्लीमैन ने पराजित किया था। शिव पूराण में वर्णित 52 शक्ति पीठों में सर्व प्रथम स्थान हिंगलाज माता का हैं। मूल स्थान पाकिस्तान में है।
जवालेश्वर महादेव जवाली स्थित इस मंदिर में साधाना रत महर्षि जाबाली ने वेदों की रचनाएं रची थी।सूर्य मंदिर भाटून्द तालाब के मुहाने पर स्थित पाण्डव कालीन सूर्य मंदिर, यहां की कलात्मक धरोहर है। बाली तहसील के इस क्षैत्र में गंधर्व सेन ने तपस्या की थी।
ढालोप-बाबा रघुनाथ पीर की धूणी के लिये सुप्रसिद्व इस स्थल पर राजस्थान, गुजरात व मालवा से तीर्थ यात्रियों का आना जाना लगा रहता है। यहां ब्रहााजी का प्राचीन मंदिर भी है।
रणकपुर-48 हजार वर्ग फीट में फैले, 2 मंजिले इस प्रस्तर नक्काशी सजे मंदिर की शिल्पकला दर्शनीय है। मघई नदी के मुहाने, मादरी पहाडी की तलहटी में 84 देव प्रतिमाओं विराजित इस मेघ मंडप अलंकृत मंदिर में 1444 खंभे पर उत्कीर्ण नक्काशी, बरबस मनमोह लेती है।
पंचतीर्थ-जैन पंचतीर्थ घाणेराव, वरकाणा, सादडी, नाडोल व नारलाई इस क्षैत्र को अद्भूत गरिमा प्रदान करते हैं । कुभा के शासनकाल में धरणीशाह द्वारा बनवाया रणकपुर मंदिर , मूंछों के चमत्कार के लिये प्रसिद्ध मुछाला महावीर घाणेराव, 11 जैन मंदिर सहित नारलाई,पदमप्रभु, नेमीनाथ, भगवान ऋ ऋषभदेव, जीरावला पाश्र्वनाथ के मंदिरों की नगरी नारलाई, पाश्र्वनाथ मंदिर व गोडवाड जैन महासभा मुख्यालय की नगरी वरकाणा इस तपोभूमि की श्रद्वा में ही वृद्वि करते है। सेवाड़ी, राता महावीर जी-बीजापुर बेडा नाणा, खुडाला, खीमेल, सांडेराव, जाखोड़ा आदि के मदिरों का शिल्प भी खासा मोहक है।
बाली दुर्ग-राजपुताने के इतिहास की धरोहर ने स्वतंत्रता संग्राम के कई नायकों को शरण दी है। आर.डी.गट्टानी को यहां काफी समय के लिये रखा गया था।
मुछाला महावीर-घाणेराव के निकट स्थित मुछाला महावीर जैन तीर्थ प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य आया हुआ हैं। इस चमत्कारिक मन्दिर के बारे में किवंदन्ती है कि भक्त की लाज रखने के लिये भगवान महावीर की मूर्ति पर मूछें निकल आई थी तभी से इस स्थान को मुछाला महावीर के नाम से जाना जाता हैं।
वरकाणा तीर्थ-रानी से 5 किलोमीटर दूर वरकाणा गांव में काफी संख्या में जैन मन्दिर बने हुये हैं यहां वर्ष भर श्रद्वालुओं का आना जाना लगा रहता है मन्दिरों की कारीगरी अत्यन्त मन भावन हैं।
नारलाई तीर्थ-जैन तीर्थ नारलाई, रानी-देसूरी मार्ग के मध्य वरकाणा से 10 किलोमीटर की दूरी पर पहाडी पर स्थित मन्दिर यहां के सौन्दर्य को दिन दुना रात चौगुना कर देता है। गुप्त िशलाऐं व मूर्तियां यहां के मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं। इसके अतिरिक्त गोडवाड में फालना का स्वर्ण मन्दिर, घाणेराव कीर्तिस्तंभ, रानी का सांई धाम मन्दिर, सादडी का मुक्ति धाम, नाडोल आशापुरा माता मन्दिर तथा मुण्डारा चामुण्डा माता मन्दिर भी देशी एवं विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन रहे हैं।