देसूरी,15 मार्च। यहां रंगपचमी के अवसर पर दर्जी,नाई,सेवक व ब्राह्मण समाज के लोगों ने नवजात बालकों को ढूंढने की रस्म की। इसके लिए जत्थे के रूप में गीत गाते हुए ये लोग कस्बे के मुख्य मार्गो से गुजरते हुए गंतव्य को लौटें।
दोपहर को लक्ष्मीनाथ मंदिर से शुरू हुए ये लोग सादों का बास,कालका माता मंदिर,ब्रह्मपुरी,पुरानी कचहरी,ऊपरला बाजार,कुम्हारों का चौड़ा,नाल का दरवाजा,नाईयों का बास होते हुए सांय को गंतव्य को लौट आए। इस दौरान ये लोग ढ़ोलक व मजीरों पर होली के गीत गाते हुए चल रहे थे। ढूढऩे के दौरान इन पर जगह-जगह रंग भी ड़ाला जाता रहा। लौटने के बाद इन लोगों ने भैरूजी मंदिर के आगे भजन प्रस्तुत किया और प्रसाद वितरण के बाद विसर्जित हो गए।
बताते हैं कि कस्बे में पहले रंगपंचमी के दिन ही रंग खेलने का रिवाज था। लेकिन प्रवासी बंधुओं के पुन: परदेस रवाना होने की जल्दी में होली के अगले रोज धुलंडी को ही रंग खेलने की परंपरा कायम कर दी। लेकिन दर्जी,नाई,सेवक व ब्राह्मण समाज के लोगों इसे कायम रखा। यद्यपि मुख्य होली के अगले रोज ही बालकों को ढूंढ लिया जाता हैं। कस्बे के शेष दूरस्थ इलाकों के बालकों को रंगमपंचमी के दिन ढूंढ लिया जाता हैं। इधर,सादड़ी कस्बे में रंगपंचमी के अवसर पर लोगों ने जमकर रंग खेला। सादड़ी में धुलंडी के दिन रंग नहीं खेला जाता हैं।