Friday, February 06, 2009

ध्वनि प्रसारक यंत्रों के शोर शराबे में विद्यार्थीयों का पढऩा दूभर

देसूरी,6 फरवरी। कस्बे में हर रोज शाम ढ़लते ही जोरशोर से बजने वाले ध्वनि प्रसारक यंत्रों की वजह से आम विद्यार्थी का पढऩा दूभर हो गया हैं। लेकिन पुलिस से लेकर प्रशासन तक इन्हें बेरोकटोक बजने दे रहा हैं।
कस्बे में धार्मिक कार्यक्रमों में हर रोज शाम होते ही लाऊड़स्पीकर अपना मुॅह खोल देते हैं और आयोजकों का जिधर मन चाहा उधर लाऊड़स्पीकर का मुॅंह कर कैसेट व सीडी लगाकर बैठ जाते हैं। रात दस बजे के करीब भजन गाना शुरू होते हैं और पूरी रात सिर पर उठा लेते हैं। बेचारा विद्यार्थी इनकी कानफोडू आवाज से परेशान हो उठता हैं और आखिर में सुबह पढऩे का सोचकर सोने लगता हैं। लेकिन शोर शराबे के आगे सोना भी उसके बस मेें नहीं होता हैं। सुबह जब वह उठता हैं तो लाउड़स्पीकरों पर प्रभाती सुनाई देती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने रात दस बजे बाद ध्वनि प्रसारक यंत्रों के बजने पर ही रोक लगा रखी हैं। लेकिन इस आदेश की पालना न तो पुलिस करा पा रही हैं और नहीं प्रशासन। कई बार यह मामला सी.एल.जी. बैठकों में भी उठा। लेकिन हर बार धार्मिक मामलों की दुहाई में यह मुद्दा दब गया।
भजनों के आयोजनों की हर किसी को चिंता हैं। लेकिन परीक्षा सिर पर होने की वजह से रात भर जग कर पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी के मन की पीड़ा कोई नहीं सुन पा रहा हैं। एक आम आदमी जो दिन भर के काम काज निपटाकर चैन की निंद सोना चाहता हैं। उसके बारे में सोचने की किसी को फुरसत नहीं हैं।

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