Thursday, February 19, 2009

गरीब की ऑंख का इलाज क्या हैं

देसूरी,19 फरवरी। एक गरीब आदमी की नासूर बन चुकी आँख का इलाज नहीं हैं। होता तो उसकी आँख से किड़े झड़ नही रहे होते। उसकी आँख को देखकर हर कोई कह सकता हैं कि इलाज तो अमीरों का ही हो सकता हैं। आँख निकलवा देने के बाद भी उसकी आँख लाइलाज हैं। नासूर इतना बड़ा हो चुका हैं कि देखना वाला पहली नजर में ही दहल जाए। सारे पैसे खर्च करने के बाद अब उसके पास दर्द के मारे कराहने के सिवाय कोई चारा नहीं बस हैं। अब इस असहाय पिडि़त को एक ऐसे फरिश्ते का इंतजार हैं जो उसके लिए मददगार बन जाए।
उपखंड के भादरलाऊ ग्राम का निवासी चालीस वर्षिय सोनाराम पुत्र भोलाराम देवासी अपने इलाज के लिए भटकते हुए गुरूवार सांय देसूरी पहूॅंचा। उसकी ऑंख का नासूर देखकर हर कोई द्रवित हो उठा। उसके साथ आए बड़े भाई निम्बाराम ने बताया कि ढ़ाई साल पहल उसके ऑंख रोगग्रस्त हुई थी। इसके बाद बीसलपुर में उसके आँख की शल्य चिकित्सा की गई। लेकिन इलाज न होने पर जोधपुर में उसे अपनी आँख ही निकलवानी पड़ी। परंतु आँख गंवाकर भी उसे राहत नहीं मिली। इसके उलट आँख एक बड़ा नासूर बन गई। इसके बाद भी वह परामर्श व उपचार के लिए दर-दर की ठोकरें खाता रहा। इसी में उसका सारा पैसा खतम हो गया। उसके भाईयों ने भी मदद की।
इलाज कराने की कोशीश करते-करते सभी परिजन थक हार-चुके हैं। लेकिन बी.पी.एल परिवार के इस सदस्य का इलाज नहीं हो पाया। उसकी अस्सी साल की मां केसी देवी को बुढ़ापे में भी बेटे की आँख पर नासूर की चिंता खाए जा रही हैं। बेटे की आँख से किड़े झड़ते हुए देखना उसकी आदत बन गई हैं। बेटा अपनी आँख की पिड़ा से सारे दिन कराहता रहता हैं। वह अपनी पीड़ा को सहन करते-करते अकेला पड़ गया हैं। यहां तक उसकी मंदबुद्धी पत्नी भी पीहर चली गई। उसकी चार साल की बेटी भी पत्नी के पास हैं। काम-धंधा न कर पाने की स्थिति ने उसे गरीबी की हालत में ला खड़ा कर दिया। अब आगे इलाज कराए भी तो कहा से। गुरूवार को भी वह बीसलपुर के भैरव नैत्र चिकित्सालय गया था। जहां आँख की बीमारी के बारे में तो ठिक-ठिक पता नहीं चला। लेकिन उसे सलाह दी गई की वह इलाज के लिए मुम्बई के किसी बड़े हॉस्पीटल जाए। आँख के नासूर ने उसे पहले से ही गरीबी के चौखट पर खड़ा कर दिया हैं। अब पैसों के बिना तो वह घर से भी बाहर नहीं निकल सकता।
अब हर समय उसके सामने एक सवाल मंडराता हैं कि गरीब का इलाज नही होता हैं। उसे हर पल एक देवदूत का इंतजार रहता हैं। शायद कोई उसके इलाज के लिए पहल कर दे।

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