संजय की कलम से
रूहानियत से चले,रौब से नहीं
साभार-ज्ञानामृत मासिक फरवरी अंक
आजकल के जमाने में,दबाने से कोई किसी से नही दबता बल्कि नाजायज दबाने पर लोग भडक उठते हैं और दबाने वाले का रौब या सम्मान बिल्कुल ही जाता रहता हैं। आजकल इसलिए ही मजदूरों या कर्मचारियों ने संगठन बना रखें हैं। कोई उनसे थोडा अकड कर व्यवहार करे तो एक-दो बार ही उन्हें दबा लेगा, तीसरी बार तो उनकी यूनियन उस व्यक्ति के विरूद्व आंदोलन खडा कर देती हैं। इसी प्रकार, घर में यदी कोई व्यक्ति अपने से छोटों पर अधिक दबाव डालता हें या सदा उनसे रौब से काम लेता हैं तो आखिर एक दिन वे उसके सामने बोल उठतें हैं और उस व्यक्ति के प्रति उनके मन में स्नेह या सम्मान की भावना नहीं रहती बल्कि वे उसे घृणा की दृष्टि से देखने लगते हैं। अत: यह समझना गलत हैं कि रौब के बिना गाडी नहीं चलती या पोजीशन का भभका जमाए बिना लोग मानते नहीं हैं, बल्कि सहीं बात तो यह हैं कि जो दूसरों के आगे झुकता हैं लोग भी उसके सामने झूकते हैं और जो अकड कर रहता हैं, लोग उसके नीचे नही रहना चाहते। इसका स्थूल उदाहरण यह हैं कि जो वृक्ष झुका हुआ होता हैं और छांव देता हैं उसके नीचे ही बडे-बडे धनी-मानी भी और गरीब मजदूर भी आकर बैठना चाहते हैं, परन्तु जो वृक्ष एकदम अकड कर ऊँचा खडा रहता हैं, जैसे कि खजूर या बांस का वृक्ष, कोई भी उसके नीचे बैठना पंसद नही करता।
दूसरों को डराना, धमकाना या अपनी पोजीशन से उनको दबाना दिव्य जीवन की रीति नही हैं बल्कि जो योग्य, कार्यकुशल, परिश्रमी और उद्यमी होते हुए भी दूसरो के आगे नम्र रहता हैं, लोग उसके आगे स्वत: ही झुकते हैं। हमारा कत्र्तव्य या लक्ष्य किसी को झुकाना नहीं हैं बल्कि योग्य बनकर अंहकार को छोड कर कत्र्तव्य करना हैं और ऐसा करते हुए भी स्वयं झुक कर रहना हैं। जब हम ऐसा करेंगे तो हमसे नीचे कार्य करने वाले देखेंगे की यह व्यक्ति इतना योग्य और कार्यकुशल होते हुए भी इतना निंरहकारी हैं कि छोटो से भी मिलजुल जाता हैं। वे अपने मन में बोलेगें-अरे,यह तो इसकी महानता हैं। वर्ना हम तो इसके आगे कुछ भी नहीं हैं। यह हमसे स्नेह और हमें हमेशा अपनी छाती से लगाए रखता हैं,कभी हमें झुकने ही नहीं देता। अहो,यह तो बहुत महान हैं,यह तो मनुष्य चोले में कोई फरिश्ता या देवता जैसा हैं। इसके लिए तो हम जान भी दे देगें। तो हमारा जीवन वास्तव में ऐसा होना चाहिए कि हमारे प्यार के कारण लोग काम करें,न कि रौब के कारण। हम स्वयं योग्य बने,स्वयं अपने हाथों से काम करें। दूसरे को कार्य सिखायें,उनके कार्य में मददगार बन जाया करें। रूहानियत में रह कर्म करें फिर देखें कि क्या रोब ड़ालने या पोजीशन जतलाने की जरूरत रहती हैं।
Tuesday, February 03, 2009
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