Friday, February 06, 2009

हमारी प्रतिज्ञा

1. हम 100 प्रतिशत मतदान का संकल्प लेते हैं। हम 100 प्रतिशत मतदान करके,देशभक्त,पराक्रमी व चरित्र वाले लोगों को सत्ताओं के शीर्ष पर बैठायेंगे और देश से भ्रष्टाचार को समाप्त कर गरीबी,भूख,बेरोजगारी,अन्याय,शोषण व अपराध को मिटायेंगे और एक शक्तिशाली भारत बनाएगें।
हम राजनीति नहीं करेंगे,परन्तु भ्रष्ट,बेईमान व अपराधी,कायर,कमजोर,बुजदिल लोगों को सत्ताओं में नहीं आने देंगे क्योंकि देशभक्त ईमानदार लोगों के द्वारा मतदान न करने के कारण ही भ्रष्ट व बेईमान लोगों के हाथ में देश की सत्ता चली जाती हैं और आपके व हमारे खून-पसीने की कमाई से प्राप्त लगभग दस लाख करोड़ रूपए से अधिक धन कुछ भ्रष्ट लोग लूट लेते हैं एवं देश कमजोर हो जाता हैं।
2. हम शून्य तकनीकी से बनी विदेशी वस्तुओं का अपने दैनिक जीवन में 100 प्रतिशत बहिष्कार करेंगे। हम देश का आर्थिक शोषण नहीं होने देंगे और देश का पैसा विदेशी कम्पनियों को देकर देश को कमजोर नहीं बनायेंगे।
3. हम अपने जीवन में 100 प्रतिशत राष्ट्रवादी चिन्तन को अपना कर राष्ट्रीय चरित्र को ऊँचा उठायेंगे। हम देश में जाति,प्रान्त,मजहबों के नाम से घृणा नहीं फैलायेंगे और न ही फैलाने देंगे।
4. जब भ्रष्ट लोग एक हो सकते हैं,तो हम श्रेष्ठ लोगें को विभाजित नहीं होने देंगे। हम देशभक्त ईमानदार लोगों को 100 प्रतिशत संगठित करेंगे। अब हमें भ्रष्ट,बेईमान व अपराधी चरित्र के लोग अपमानित नहीं कर पायेंगे।
5. हम सम्पूर्ण भारत को 100 प्रतिशत योगमय बनायेंगे। हम देश के छ: लाख अड़तिस हजार तीन सो पैसठ गाँवों तक योग के संदेश को लेकर जायेंगे और 110 करोड़ देशवासियों का योग से स्वस्थ तन,स्वस्थ मन,स्वस्थ चिन्तन बना कर उनके जीवन में पूर्ण पवित्रता लायेंगे और योगधर्म से जन-जन का स्वधर्म व राष्ट्रधर्म जगा कर उसको स्वकर्म में लगायेंगे और भारत को फिर से विश्वगुरू बनायेंगे।
भारत माता की जय। वन्देमातरम्।।


इस प्रतिज्ञा का देसूरी कस्बे में मंगलवार प्रात: तीन दिवसीय योग एवं प्राणायाम शिविर में के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि पंतजलि योग समिति के राज्य प्रभारी महेंद्र कोठारी ने वाचन किया। इसे दिव्य प्रकाशन,दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट,पंतजलि योगपीठ ट्रस्ट,महर्षि दयानन्द ग्राम,निकट बहादराबाद,हरिद्वार-249402,उत्तराखंड द्वारा जीवन दर्शन पुस्तिका में आवरण पृष्ठ के पीछे हमारी प्रतिज्ञा के शीर्षक से प्रकाशित किया हैं। इसके लेखक योगगुरू स्वामी रामदेव हैं। देश व पाठकों के हित में साभार प्रस्तुत किया जा रहा हैं।

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