Monday, February 09, 2009

ताकि चुरा न ले जाए होली

देसूरी,9 फरवरी। स्वतंत्रता के बाद देश में लोकतांत्रिक युग शुरू हो गया और शांती एवं कानून-व्यवस्था कायम हो गई। लेकिन कस्बे में प्राचिन काल में घटी होली चुराने के प्रयास की घटना के बाद से आज तक होलिका स्थल बदलने की परंपरा का यथावत निर्वाह किया जा रहा हैं। यहां सोमवार को भी शुभ मुर्हत में होली रोपण किया गया। इसी के साथ परम्परा के अनुसार उसे अपने स्थान से हटाकर दूसरी जगह रोपा गया। लेकिन होलिका दहन पहले वाले स्थान पर ही किया जाएगा।
बड़े बुर्जुगों ने बताया कि प्राचिनकाल में निकटवर्ती रूपनगर के शासक ने प्रतिशोध की भावना से कस्बे के परकोटे के बाहर बस स्टेंड के निकट खड़ी होली को चुराने का प्रयास किया था। इस घटना के बाद तत्कालिन स्थानीय शासक ने हिफाजत के लिए परकोटे के भितर होली रोपने के आदेश दिए। इसके तहत होली को मूल स्थान पर रोपने की औपचारिकता की जाती हैं और बाद में इसे कस्बे के भितर रोपा जाता हैं। इसके बाद होलिका दहन के लिए एक बार फिॅर मूल स्थान पर ले जाया जाता हैं।
इस परंपरा से जाहिर हैं कि होली को तत्कालिन शासक व प्रजा अपनी नाक का सवाल मानती थी और आज भी इस परंपरा का ज्यों का त्यों निर्वाह जारी हैं।

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